जी-20 क्या है? जाने इसके
सदस्य देश व उद्देश्य
वैश्वीकरण के युग में विश्व अर्थव्यवस्था
के संचालन के लिए जी–20 (G20) समूह का गठन किया गया है। इसका गठन
1997 में पूर्वी एशिया में आए वित्तीय
संकट की पृष्ठभूमि में हुआ था। इसके पूर्व धनी देशों में विचार–विमर्श हेतु इसी तरह
के समूह जी–7 की स्थापना की गई थी। अप्रैल 1998 तथा
पुन: अक्टूबर 1998 में विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं
के प्रतिनिधियों की बैठकें जी–22 नाम से वाशिंगटन में आयोजित की गई
थी। इनका उद्देश्य विचार–विमर्श में गैर–जी–7 देशों को भी शामिल करना था। मार्च
और अप्रैल में इस समूह की बैठकें पुन: सम्पन्न हुईं। इन बैठकों को जी–33
बैठकों के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इनमें 33 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया
था। 1990 के दशक के वित्तीय संकट के समाधान
में इन बैठकों से अत्यन्त लाभ हुआ। अत: इस तरह की बैठकों का स्थायी बनाने के लिए प्रस्ताव
पर सहमति बनी।
इसी के परिणामस्वरूप जी–20
समूह का गठन हुआ, जिसमें विश्व की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को शामिल
किया गया है। इस समूह में 19 देश सदस्य हैं तथा यूरोपियन संघ इसका
20वां सदस्य है। इसकी उद्घाटन बैठक 15–16 दिसम्बर,
1999 को बर्लिन में हुई थी। इसमें सदस्य
देशों के वित्त मंत्रियों तथा इनके केन्द्रीय बैंकों के गवर्नर ने भाग लिया था। इस
वर्ष 2008 से चल रही वैश्विक मंदी के आलोक में
इस संस्था का महत्व और भी बढ़ गया है। इस शिखर सम्मेलनों की शुरूआत हुई। उच्चस्तरीय
विचार–विमर्श के लिए जी–20 समूह के शिखर सम्मेलनों की शुरूआत
हुई। उच्चस्तरीय विचार–विमर्श के लिए जी–20 समूह का पहला शिखर सम्मेलन नवम्बर
2008 में वाशिंगटन में सम्पन्न हुआ।
जी–20 (G-20) में 19 सदस्य देश हैं तथा यूरोपीय संघ इसका 20वां सदस्य है। मैसट्रिक्ट सन्धि 1993 के अन्तर्गत यूरोपियन यूनियन को स्वतन्त्र विधिक अस्तित्व प्राप्त है। अत: वह अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता प्राप्त कर करता है। इसके 19 सदस्य देश है–अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इण्डोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, इंगलैण्ड तथा अमरीका।
जी–20 (G-20) में 19 सदस्य देश हैं तथा यूरोपीय संघ इसका 20वां सदस्य है। मैसट्रिक्ट सन्धि 1993 के अन्तर्गत यूरोपियन यूनियन को स्वतन्त्र विधिक अस्तित्व प्राप्त है। अत: वह अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता प्राप्त कर करता है। इसके 19 सदस्य देश है–अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इण्डोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, इंगलैण्ड तथा अमरीका।
आमतौर पर जी–20 की
बैठकों में इन देशों के वित्तीय मंत्री तथा केन्द्रीय बैंकों के गवर्नर भाग लेते हैं,
लेकिन शिखर बैठकों में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष/शासनाध्यक्ष भाग लेते हैं। इसके
अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तथा जी–20 के
बीच समायोजन बनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबन्ध निदेशक, विश्व बैंक
के अध्यक्ष, विश्व मौद्रिक व वित्तीय समिति के अध्यक्ष एवं अन्तर्राष्ट्रीय विकास समिति
के अध्यक्ष भी इन बैठकों में भाग लेते हैं, ये दोनों ही समितियां क्रमश: मुद्रा कोष
व विश्व बैंक की स्थायी समितियां हैं।
यदि जी–20 देशों की अर्थव्यवस्था व आकार को देखा जाए, तो यह स्पष्ट है कि यह देश विश्व के 90 प्रतिशत सकल राष्ट्रीय उत्पाद, विश्व के 80 प्रतिशत व्यापार तथा विश्व की दो तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी–8 की तुलना में जी–20 में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की सदस्यता इस संस्था को अधिक प्रभाव प्रदान करती है। इसीलिए विश्व अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती जा रही है।
जी–20 के उद्देश्य : यद्यपि जी–20 का कोई औपचारिक संगठन व संविधान नहीं है, लेकिन इसकी गतिविधियों से इसके निम्नलिखित महत्वपूर्ण उद्देश्य स्पष्ट होते हैं–
यदि जी–20 देशों की अर्थव्यवस्था व आकार को देखा जाए, तो यह स्पष्ट है कि यह देश विश्व के 90 प्रतिशत सकल राष्ट्रीय उत्पाद, विश्व के 80 प्रतिशत व्यापार तथा विश्व की दो तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी–8 की तुलना में जी–20 में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की सदस्यता इस संस्था को अधिक प्रभाव प्रदान करती है। इसीलिए विश्व अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती जा रही है।
जी–20 के उद्देश्य : यद्यपि जी–20 का कोई औपचारिक संगठन व संविधान नहीं है, लेकिन इसकी गतिविधियों से इसके निम्नलिखित महत्वपूर्ण उद्देश्य स्पष्ट होते हैं–
(a) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विकास तथा विश्व व्यवस्था के प्रबन्धन।
(b) वैश्विक आर्थिक विकास तथा स्थिरता से सम्बन्धित महत्वपूर्ण मुद्दों पर विकसित देशों तथा उभरती हुई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के मध्य विचार–विमर्श के लिए एक मंच का कार्य करना।
(c) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को मजबूत बनाना तथा राष्ट्रीय नीतियों, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के मध्य समन्वय स्थापित करना।
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